1 उन पर अफ़सोस जो दूसरों को नुक़सान पहुँचाने के मनसूबे बाँधते और अपने बिस्तर पर ही साज़िशें करते हैं। पौ फटते ही वह उठकर उन्हें पूरा करते हैं, क्योंकि वह यह करने का इख़्तियार रखते हैं। 2 जब वह किसी खेत या मकान के लालच में आ जाते हैं तो उसे छीन लेते हैं। वह लोगों पर ज़ुल्म करके उनके घर और मौरूसी मिलकियत उनसे लूट लेते हैं।
3 चुनाँचे रब फ़रमाता है, “मैं इस क़ौम पर आफ़त का मनसूबा बाँध रहा हूँ, ऐसा फंदा जिसमें से तुम अपनी गरदनों को निकाल नहीं सकोगे। तब तुम सर उठाकर नहीं फिरोगे, क्योंकि वक़्त बुरा ही होगा। 4 उस दिन लोग अपने गीतों में तुम्हारा मज़ाक़ उड़ाएँगे, वह मातम का तलख़ गीत गाकर तुम्हें लान-तान करेंगे,
5 चुनाँचे आइंदा तुममें से कोई नहीं होगा जो रब की जमात में क़ुरा डालकर मौरूसी ज़मीन तक़सीम करे।
6 वह नबुव्वत करते हैं, “नबुव्वत मत करो! नबुव्वत करते वक़्त इनसान को इस क़िस्म की बातें नहीं सुनानी चाहिएँ। यह सहीह नहीं कि हमारी रुसवाई हो जाएगी।” 7 ऐ याक़ूब के घराने, क्या तुझे इस तरह की बातें करनी चाहिएँ, “क्या रब नाराज़ है? क्या वह ऐसा काम करेगा?”
12 ऐ याक़ूब की औलाद, एक दिन मैं तुम सबको यक़ीनन जमा करूँगा। तब मैं इसराईल का बचा हुआ हिस्सा यों इकट्ठा करूँगा जिस तरह भेड़-बकरियों को बाड़े में या रेवड़ को चरागाह में। मुल्क में चारों तरफ़ हुजूमों का शोर मचेगा। 13 एक राहनुमा उनके आगे आगे चलेगा जो उनके लिए रास्ता खोलेगा। तब वह शहर के दरवाज़े को तोड़कर उसमें से निकलेंगे। उनका बादशाह उनके आगे आगे चलेगा, रब ख़ुद उनकी राहनुमाई करेगा।”
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a लफ़्ज़ी तरजुमा : जो हवा यानी कुछ नहीं अपने साथ लेकर आए।