1 उस ज़माने में जब इसराईल का कोई बादशाह नहीं था एक लावी ने अपने घर में दाश्ता रखी जो यहूदाह के शहर बैत-लहम की रहनेवाली थी। आदमी इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े के किसी दूर-दराज़ कोने में आबाद था। 2 लेकिन एक दिन औरत मर्द से नाराज़ हुई और मैके वापस चली गई। चार माह के बाद 3 लावी दो गधे और अपने नौकर को लेकर बैत-लहम के लिए रवाना हुआ ताकि दाश्ता का ग़ुस्सा ठंडा करके उसे वापस आने पर आमादा करे।
8 पाँचवें दिन आदमी सुबह-सवेरे उठा और जाने के लिए तैयार हुआ। सुसर ने ज़ोर दिया, “पहले कुछ खाना खाकर ताज़ादम हो जाएँ। आप दोपहर के वक़्त भी जा सकते हैं।” चुनाँचे दोनों खाने के लिए बैठ गए।
9 दोपहर के वक़्त लावी अपनी बीवी और नौकर के साथ जाने के लिए उठा। सुसर एतराज़ करने लगा, “अब देखें, दिन ढलनेवाला है। रात ठहरकर अपना दिल बहलाएँ। बेहतर है कि आप कल सुबह-सवेरे ही उठकर घर के लिए रवाना हो जाएँ।” 10-11 लेकिन अब लावी किसी भी सूरत में एक और रात ठहरना नहीं चाहता था। वह अपने गधों पर ज़ीन कसकर अपनी बीवी और नौकर के साथ रवाना हुआ।
14 चुनाँचे वह आगे निकले। जब सूरज ग़ुरूब होने लगा तो वह बिनयमीन के क़बीले के शहर जिबिया के क़रीब पहुँच गए 15 और रास्ते से हटकर शहर में दाख़िल हुए। लेकिन कोई उनकी मेहमान-नवाज़ी नहीं करना चाहता था, इसलिए वह शहर के चौक में रुक गए।
16 फिर अंधेरे में एक बूढ़ा आदमी वहाँ से गुज़रा। असल में वह इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े का रहनेवाला था और जिबिया में अजनबी था, क्योंकि बाक़ी बाशिंदे बिनयमीनी थे। अब वह खेत में अपने काम से फ़ारिग़ होकर शहर में वापस आया था। 17 मुसाफ़िरों को चौक में देखकर उसने पूछा, “आप कहाँ से आए और कहाँ जा रहे हैं?” 18 लावी ने जवाब दिया, “हम यहूदाह के बैत-लहम से आए हैं और इफ़राईम के पहाड़ी इलाक़े के एक दूर-दराज़ कोने तक सफ़र कर रहे हैं। वहाँ मेरा घर है और वहीं से मैं रवाना होकर बैत-लहम चला गया था। इस वक़्त मैं रब के घर जा रहा हूँ। लेकिन यहाँ जिबिया में कोई नहीं जो हमारी मेहमान-नवाज़ी करने के लिए तैयार हो, 19 हालाँकि हमारे पास खाने की तमाम चीज़ें मौजूद हैं। गधों के लिए भूसा और चारा है, और हमारे लिए भी काफ़ी रोटी और मै है। हमें किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं है।”
20 बूढ़े ने कहा, “फिर मैं आपको अपने घर में ख़ुशआमदीद कहता हूँ। अगर आपको कोई चीज़ दरकार हो तो मैं उसे मुहैया करूँगा। हर सूरत में चौक में रात मत गुज़ारना।” 21 वह मुसाफ़िरों को अपने घर ले गया और गधों को चारा खिलाया। मेहमानों ने अपने पाँव धोकर खाना खाया और मै पी।
22 वह यों खाने की रिफ़ाक़त से लुत्फ़अंदोज़ हो रहे थे कि जिबिया के कुछ शरीर मर्द घर को घेरकर दरवाज़े को ज़ोर से खटखटाने लगे। वह चिल्लाए, “उस आदमी को बाहर ला जो तेरे घर में ठहरा हुआ है ताकि हम उससे ज़्यादती करें!” 23 बूढ़ा आदमी बाहर गया ताकि उन्हें समझाए, “नहीं, भाइयो, ऐसा शैतानी अमल मत करना। यह अजनबी मेरा मेहमान है। ऐसी शर्मनाक हरकत मत करना! 24 इससे पहले मैं अपनी कुँवारी बेटी और मेहमान की दाश्ता को बाहर ले आता हूँ। उन्हीं से ज़्यादती करें। जो जी चाहे उनके साथ करें, लेकिन आदमी के साथ ऐसी शर्मनाक हरकत न करें।”
25 लेकिन बाहर के मर्दों ने उस की न सुनी। तब लावी अपनी दाश्ता को पकड़कर बाहर ले गया और उसके पीछे दरवाज़ा बंद कर दिया। शहर के आदमी पूरी रात उस की बेहुरमती करते रहे। जब पौ फटने लगी तो उन्होंने उसे फ़ारिग़ कर दिया। 26 सूरज के तुलू होने से पहले औरत उस घर के पास वापस आई जिसमें शौहर ठहरा हुआ था। दरवाज़े तक तो वह पहुँच गई लेकिन फिर गिरकर वहीं की वहीं पड़ी रही।
29 जब पहुँचा तो उसने छुरी लेकर औरत की लाश को 12 टुकड़ों में काट लिया, फिर उन्हें इसराईल की हर जगह भेज दिया। 30 जिसने भी यह देखा उसने घबराकर कहा, “ऐसा जुर्म हमारे दरमियान कभी नहीं हुआ। जब से हम मिसर से निकलकर आए हैं ऐसी हरकत देखने में नहीं आई। अब लाज़िम है कि हम ग़ौर से सोचें और एक दूसरे से मशवरा करके अगले क़दम के बारे में फ़ैसला करें।”
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