1 मेरे भाइयो, आपमें से ज़्यादा उस्ताद न बनें। आपको मालूम है कि हम उस्तादों की ज़्यादा सख़्ती से अदालत की जाएगी। 2 हम सबसे तो कई तरह की ग़लतियाँ सरज़द होती हैं। लेकिन जिस शख़्स से बोलने में कभी ग़लती नहीं होती वह कामिल है और अपने पूरे बदन को क़ाबू में रखने के क़ाबिल है। 3 हम घोड़े के मुँह में लगाम का दहाना रख देते हैं ताकि वह हमारे हुक्म पर चले, और इस तरह हम अपनी मरज़ी से उसका पूरा जिस्म चला लेते हैं। 4 या बादबानी जहाज़ की मिसाल लें। जितना भी बड़ा वह हो और जितनी भी तेज़ हवा चलती हो नाख़ुदा एक छोटी-सी पतवार के ज़रीए उसका रुख़ ठीक रखता है। यों ही वह उसे अपनी मरज़ी से चला लेता है। 5 इसी तरह ज़बान एक छोटा-सा अज़ु है, लेकिन वह बड़ी बड़ी बातें करती है।
13 क्या आपमें से कोई दाना और समझदार है? वह यह बात अपने अच्छे चाल-चलन से ज़ाहिर करे, हिकमत से पैदा होनेवाली हलीमी के नेक कामों से। 14 लेकिन ख़बरदार! अगर आप दिल में हसद की कड़वाहट और ख़ुदग़रज़ी पाल रहे हैं तो इस पर शेख़ी मत मारना, न सच्चाई के ख़िलाफ़ झूट बोलें। 15 ऐसा फ़ख़र आसमान की तरफ़ से नहीं है, बल्कि दुनियावी, ग़ैररूहानी और इबलीस से है। 16 क्योंकि जहाँ हसद और ख़ुदग़रज़ी है वहाँ फ़साद और हर शरीर काम पाया जाता है। 17 आसमान की हिकमत फ़रक़ है। अव्वल तो वह पाक और मुक़द्दस है। नीज़ वह अमनपसंद, नरमदिल, फ़रमाँबरदार, रहम और अच्छे फल से भरी हुई, ग़ैरजानिबदार और ख़ुलूसदिल है। 18 और जो सुलह कराते हैं उनके लिए रास्तबाज़ी का फल सलामती से बोया जाता है।
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