5 तू उनसे मिलता है जो ख़ुशी से रास्त काम करते, जो तेरी राहों पर चलते हुए तुझे याद करते हैं! अफ़सोस, तू हमसे नाराज़ हुआ, क्योंकि हम शुरू से तेरा गुनाह करके तुझसे बेवफ़ा रहे हैं। तो फिर हम किस तरह बच जाएंगे? 6 हम सब नापाक हो गए हैं, हमारे तमाम नाम-निहाद रास्त काम गंदे चीथड़ों की मानिंद हैं। हम सब पत्तों की तरह मुरझा गए हैं, और हमारे गुनाह हमें हवा के झोंकों की तरह उड़ाकर ले जा रहे हैं।
7 कोई नहीं जो तेरा नाम पुकारे या तुझसे लिपटने की कोशिश करे। क्योंकि तूने अपना चेहरा हमसे छुपाकर हमें हमारे क़ुसूरों के हवाले छोड़ दिया है।
8 ऐ रब, ताहम तू ही हमारा बाप, हमारा कुम्हार है। हम सब मिट्टी ही हैं जिसे तेरे हाथ ने तश्कील दिया है। 9 ऐ रब, हद से ज़्यादा हमसे नाराज़ न हो! हमारे गुनाह तुझे हमेशा तक याद न रहें। ज़रा इसका लिहाज़ कर कि हम सब तेरी क़ौम हैं। 10 तेरे मुक़द्दस शहर वीरान हो गए हैं, यहाँ तक कि सिय्यून भी बयाबान ही है, यरूशलम वीरानो-सुनसान है। 11 हमारा मुक़द्दस और शानदार घर जहाँ हमारे बापदादा तेरी सताइश करते थे नज़रे-आतिश हो गया है, जो कुछ भी हम अज़ीज़ रखते थे वह खंडर बन गया है।
12 ऐ रब, क्या तू इन वाक़ियात के बावुजूद भी अपने आपको हमसे दूर रखेगा? क्या तू ख़ामोश रहकर हमें हद से ज़्यादा पस्त होने देगा?।
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