1 दर्जे-ज़ैल उन ख़ानदानी सरपरस्तों की फ़हरिस्त है जो अर्तख़शस्ता बादशाह की हुकूमत के दौरान मेरे साथ बाबल से यरूशलम के लिए रवाना हुए। हर ख़ानदान के मर्दों की तादाद भी दर्ज है :
2-3 फ़ीनहास के ख़ानदान का जैरसोम,
4 पख़त-मोआब के ख़ानदान का इलीहूऐनी बिन ज़रख़ियाह 200 मर्दों के साथ,
5 ज़त्तू के ख़ानदान का सकनियाह बिन यहज़ियेल 300 मर्दों के साथ,
6 अदीन के ख़ानदान का अबद बिन यूनतन 50 मर्दों के साथ,
7 ऐलाम के ख़ानदान का यसायाह बिन अतलियाह 70 मर्दों के साथ,
8 सफ़तियाह के ख़ानदान का ज़बदियाह बिन मीकाएल 80 मर्दों के साथ,
9 योआब के ख़ानदान का अबदियाह बिन यहियेल 218 मर्दों के साथ,
10 बानी के ख़ानदान का सलूमीत बिन यूसिफ़ियाह 160 मर्दों के साथ,
11 बबी के ख़ानदान का ज़करियाह बिन बबी 28 मर्दों के साथ,
12 अज़जाद के ख़ानदान का यूहनान बिन हक़्क़ातान 110 मर्दों के साथ,
13 अदूनिक़ाम के ख़ानदान के आख़िरी लोग इलीफ़लत, यइयेल और समायाह 60 मर्दों के साथ,
14 बिगवई का ख़ानदान का ऊती और ज़बूद 70 मर्दों के साथ।
15 मैं यानी अज़रा ने मज़कूरा लोगों को उस नहर के पास जमा किया जो अहावा की तरफ़ बहती है। वहाँ हम ख़ैमे लगाकर तीन दिन ठहरे रहे। इस दौरान मुझे पता चला कि गो आम लोग और इमाम आ गए हैं लेकिन एक भी लावी हाज़िर नहीं है। 16 चुनाँचे मैंने इलियज़र, अरियेल, समायाह, इलनातन, यरीब, इलनातन, नातन, ज़करियाह और मसुल्लाम को अपने पास बुला लिया। यह सब ख़ानदानी सरपरस्त थे जबकि शरीअत के दो उस्ताद बनाम यूयारीब और इलनातन भी साथ थे। 17 मैंने उन्हें लावियों की आबादी कासिफ़ियाह के बुज़ुर्ग इद्दू के पास भेजकर वह कुछ बताया जो उन्हें इद्दू, उसके भाइयों और रब के घर के ख़िदमतगारों को बताना था ताकि वह हमारे ख़ुदा के घर के लिए ख़िदमतगार भेजें।
18 अल्लाह का शफ़ीक़ हाथ हम पर था, इसलिए उन्होंने हमें महली बिन लावी बिन इसराईल के ख़ानदान का समझदार आदमी सरिबियाह भेज दिया। सरिबियाह अपने बेटों और भाइयों के साथ पहुँचा। कुल 18 मर्द थे। 19 इनके अलावा मिरारी के ख़ानदान के हसबियाह और यसायाह को भी उनके बेटों और भाइयों के साथ हमारे पास भेजा गया। कुल 20 मर्द थे। 20 उनके साथ रब के घर के 220 ख़िदमतगार थे। इनके तमाम नाम नसबनामे में दर्ज थे। दाऊद और उसके मुलाज़िमों ने उनके बापदादा को लावियों की ख़िदमत करने की ज़िम्मादारी दी थी।
21 वहीं अहावा की नहर के पास ही मैंने एलान किया कि हम सब रोज़ा रखकर अपने आपको अपने ख़ुदा के सामने पस्त करें और दुआ करें कि वह हमें हमारे बाल-बच्चों और सामान के साथ सलामती से यरूशलम पहुँचाए। 22 क्योंकि हमारे साथ फ़ौजी और घुड़सवार नहीं थे जो हमें रास्ते में डाकुओं से महफ़ूज़ रखते। बात यह थी कि मैं शहनशाह से यह माँगने से शर्म महसूस कर रहा था, क्योंकि हमने उसे बताया था, “हमारे ख़ुदा का शफ़ीक़ हाथ हर एक पर ठहरता है जो उसका तालिब रहता है। लेकिन जो भी उसे तर्क करे उस पर उसका सख़्त ग़ज़ब नाज़िल होता है।” 23 चुनाँचे हमने रोज़ा रखकर अपने ख़ुदा से इलतमास की कि वह हमारी हिफ़ाज़त करे, और उसने हमारी सुनी।
24 फिर मैंने इमामों के 12 राहनुमाओं को चुन लिया, नीज़ सरिबियाह, हसबियाह और मज़ीद 10 लावियों को। 25 उनकी मौजूदगी में मैंने सोना-चाँदी और बाक़ी तमाम सामान तोल लिया जो शहनशाह, उसके मुशीरों और अफ़सरों और वहाँ के तमाम इसराईलियों ने हमारे ख़ुदा के घर के लिए अता किया था।
26 मैंने तोलकर ज़ैल का सामान उनके हवाले कर दिया : तक़रीबन 22,000 किलोग्राम चाँदी, चाँदी का कुछ सामान जिसका कुल वज़न तक़रीबन 3,400 किलोग्राम था, 3,400 किलोग्राम सोना, 27 सोने के 20 प्याले जिनका कुल वज़न तक़रीबन साढ़े 8 किलोग्राम था, और पीतल के दो पालिश किए हुए प्याले जो सोने के प्यालों जैसे क़ीमती थे।
28 मैंने आदमियों से कहा, “आप और यह तमाम चीज़ें रब के लिए मख़सूस हैं। लोगों ने अपनी ख़ुशी से यह सोना-चाँदी रब आपके बापदादा के ख़ुदा के लिए क़ुरबान की है। 29 सब कुछ एहतियात से महफ़ूज़ रखें, और जब आप यरूशलम पहुँचेंगे तो इसे रब के घर के ख़ज़ाने तक पहुँचाकर राहनुमा इमामों, लावियों और ख़ानदानी सरपरस्तों की मौजूदगी में दुबारा तोलना।”
30 फिर इमामों और लावियों ने सोना-चाँदी और बाक़ी सामान लेकर उसे यरूशलम में हमारे ख़ुदा के घर में पहुँचाने के लिए महफ़ूज़ रखा।
31 हम पहले महीने के 12वें दिन *19 अप्रैल। अहावा नहर से यरूशलम के लिए रवाना हुए। अल्लाह का शफ़ीक़ हाथ हम पर था, और उसने हमें रास्ते में दुश्मनों और डाकुओं से महफ़ूज़ रखा। 32 हम यरूशलम पहुँचे तो पहले तीन दिन आराम किया। 33 चौथे दिन हमने अपने ख़ुदा के घर में सोना-चाँदी और बाक़ी मख़सूस सामान तोलकर इमाम मरीमोत बिन ऊरियाह के हवाले कर दिया। उस वक़्त इलियज़र बिन फ़ीनहास और दो लावी बनाम यूज़बद बिन यशुअ और नौअदियाह बिन बिन्नूई उसके साथ थे। 34 हर चीज़ गिनी और तोली गई, फिर उसका पूरा वज़न फ़हरिस्त में दर्ज किया गया।
35 इसके बाद जिलावतनी से वापस आए हुए तमाम लोगों ने इसराईल के ख़ुदा को भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ पेश कीं। इस नाते से उन्होंने पूरे इसराईल के लिए 12 बैल, 96 मेंढे, भेड़ के 77 बच्चे और गुनाह की क़ुरबानी के 12 बकरे क़ुरबान किए।
36 मुसाफ़िरों ने दरियाए-फ़ुरात के मग़रिबी इलाक़े के गवर्नरों और हाकिमों को शहनशाह की हिदायात पहुँचाईं। इनको पढ़कर उन्होंने इसराईली क़ौम और अल्लाह के घर की हिमायत की।
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a 19 अप्रैल।