1 तीसरे दिन आस्तर मलिका अपना शाही लिबास पहने हुए महल के अंदरूनी सहन में दाख़िल हुई। यह सहन उस हाल के सामने था जिसमें तख़्त लगा था। उस वक़्त बादशाह दरवाज़े के मुक़ाबिल अपने तख़्त पर बैठा था। 2 आस्तर को सहन में खड़ी देखकर वह ख़ुश हुआ और सोने के शाही असा को उस की तरफ़ बढ़ा दिया। तब आस्तर क़रीब आई और असा के सिरे को छू दिया। 3 बादशाह ने उससे पूछा, “आस्तर मलिका, क्या बात है? आप क्या चाहती हैं? मैं उसे देने के लिए तैयार हूँ, ख़ाह सलतनत का आधा हिस्सा क्यों न हो!”
4 आस्तर ने जवाब दिया, “मैंने आज के लिए ज़ियाफ़त की तैयारियाँ की हैं। अगर बादशाह को मंज़ूर हो तो वह हामान को अपने साथ लेकर उसमें शिरकत करें।”
5 बादशाह ने अपने मुलाज़िमों को हुक्म दिया, “जल्दी करो! हामान को बुलाओ ताकि हम आस्तर की ख़ाहिश पूरी कर सकें।” चुनाँचे बादशाह और हामान आस्तर की तैयारशुदा ज़ियाफ़त में शरीक हुए। 6 मै पी पीकर बादशाह ने आस्तर से पूछा, “अब मुझे बताएँ, आप क्या चाहती हैं? वह आपको दिया जाएगा। अपनी दरख़ास्त पेश करें, क्योंकि मैं सलतनत के आधे हिस्से तक आपको देने के लिए तैयार हूँ।”
7 आस्तर ने जवाब दिया, “मेरी दरख़ास्त और आरज़ू यह है, 8 अगर बादशाह मुझसे ख़ुश हों और उन्हें मेरी गुज़ारिश और दरख़ास्त पूरी करना मंज़ूर हो तो वह कल एक बार फिर हामान के साथ एक ज़ियाफ़त में शिरकत करें जो मैं आपके लिए तैयार करूँ। फिर मैं बादशाह को जवाब दूँगी।”
9 उस दिन जब हामान महल से निकला तो वह बड़ा ख़ुश और ज़िंदादिल था। लेकिन फिर उस की नज़र मर्दकी पर पड़ गई जो शाही सहन के दरवाज़े के पास बैठा था। न वह खड़ा हुआ, न हामान को देखकर काँप गया। हामान लाल-पीला हो गया, 10 लेकिन अपने आप पर क़ाबू रखकर वह चला गया।
14 उस की बीवी ज़रिश और बाक़ी अज़ीज़ों ने मशवरा दिया, “सूली बनवाएँ जिसकी ऊँचाई 75 फ़ुट हो। फिर कल सुबह-सवेरे बादशाह के पास जाकर गुज़ारिश करें कि मर्दकी को उससे लटकाया जाए। इसके बाद आप तसल्ली से बादशाह के साथ जाकर ज़ियाफ़त के मज़े ले सकते हैं।” यह मनसूबा हामान को अच्छा लगा, और उसने सूली तैयार करवाई।
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