1 हिज़क़ियाह ने इसराईल और यहूदाह की हर जगह अपने क़ासिदों को भेजकर लोगों को रब के घर में आने की दावत दी, क्योंकि वह उनके साथ रब इसराईल के ख़ुदा की ताज़ीम में फ़सह की ईद मनाना चाहता था। उसने इफ़राईम और मनस्सी के क़बीलों को भी दावतनामे भेजे। 2 बादशाह ने अपने अफ़सरों और यरूशलम की पूरी जमात के साथ मिलकर फ़ैसला किया कि हम यह ईद दूसरे महीने में मनाएँगे। 3 आम तौर पर यह पहले महीने में मनाई जाती थी, लेकिन उस वक़्त तक ख़िदमत के लिए तैयार इमाम काफ़ी नहीं थे। क्योंकि अब तक सब अपने आपको पाक-साफ़ न कर सके। दूसरी बात यह थी कि लोग इतनी जल्दी से यरूशलम में जमा न हो सके। 4 इन बातों के पेशे-नज़र बादशाह और तमाम हाज़िरीन इस पर मुत्तफ़िक़ हुए कि फ़सह की ईद मुलतवी की जाए। 5 उन्होंने फ़ैसला किया कि हम तमाम इसराईलियों को जुनूब में बैर-सबा से लेकर शिमाल में दान तक दावत देंगे। सब यरूशलम आएँ ताकि हम मिलकर रब इसराईल के ख़ुदा की ताज़ीम में फ़सह की ईद मनाएँ। असल में यह ईद बड़ी देर से हिदायात के मुताबिक़ नहीं मनाई गई थी।
6 बादशाह के हुक्म पर क़ासिद इसराईल और यहूदाह में से गुज़रे। हर जगह उन्होंने लोगों को बादशाह और उसके अफ़सरों के ख़त पहुँचा दिए। ख़त में लिखा था,
10 क़ासिद इफ़राईम और मनस्सी के पूरे क़बायली इलाक़े में से गुज़रे और हर शहर को यह पैग़ाम पहुँचाया। फिर चलते चलते वह ज़बूलून तक पहुँच गए। लेकिन अकसर लोग उनकी बात सुनकर हँस पड़े और उनका मज़ाक़ उड़ाने लगे। 11 सिर्फ़ आशर, मनस्सी और ज़बूलून के चंद एक आदमी फ़रोतनी का इज़हार करके मान गए और यरूशलम आए। 12 यहूदाह में अल्लाह ने लोगों को तहरीक दी कि उन्होंने यकदिली से उस हुक्म पर अमल किया जो बादशाह और बुज़ुर्गों ने रब के फ़रमान के मुताबिक़ दिया था।
13 दूसरे महीने में बहुत ज़्यादा लोग बेख़मीरी रोटी की ईद मनाने के लिए यरूशलम पहुँचे। 14 पहले उन्होंने शहर से बुतों की तमाम क़ुरबानगाहों को दूर कर दिया। बख़ूर जलाने की छोटी क़ुरबानगाहों को भी उन्होंने उठाकर वादीए-क़िदरोन में फेंक दिया। 15 दूसरे महीने के 14वें दिन फ़सह के लेलों को ज़बह किया गया। इमामों और लावियों ने शरमिंदा होकर अपने आपको ख़िदमत के लिए पाक-साफ़ कर रखा था, और अब उन्होंने भस्म होनेवाली क़ुरबानियों को रब के घर में पेश किया। 16 वह ख़िदमत के लिए यों खड़े हो गए जिस तरह मर्दे-ख़ुदा मूसा की शरीअत में फ़रमाया गया है। लावी क़ुरबानियों का ख़ून इमामों के पास लाए जिन्होंने उसे क़ुरबानगाह पर छिड़का।
17 लेकिन हाज़िरीन में से बहुत-से लोगों ने अपने आपको सहीह तौर पर पाक-साफ़ नहीं किया था। उनके लिए लावियों ने फ़सह के लेलों को ज़बह किया ताकि उनकी क़ुरबानियों को भी रब के लिए मख़सूस किया जा सके। 18 ख़ासकर इफ़राईम, मनस्सी, ज़बूलून और इशकार के अकसर लोगों ने अपने आपको सहीह तौर पर पाक-साफ़ नहीं किया था। चुनाँचे वह फ़सह के खाने में उस हालत में शरीक न हुए जिसका तक़ाज़ा शरीअत करती है। लेकिन हिज़क़ियाह ने उनकी शफ़ाअत करके दुआ की, “रब जो मेहरबान है हर एक को मुआफ़ करे 19 जो पूरे दिल से रब अपने बापदादा के ख़ुदा का तालिब रहने का इरादा रखता है, ख़ाह उसे मक़दिस के लिए दरकार पाकीज़गी हासिल न भी हो।” 20 रब ने हिज़क़ियाह की दुआ सुनकर लोगों को बहाल कर दिया।
21 यरूशलम में जमाशुदा इसराईलियों ने बड़ी ख़ुशी से सात दिन तक बेख़मीरी रोटी की ईद मनाई। हर दिन लावी और इमाम अपने साज़ बजाकर बुलंद आवाज़ से रब की सताइश करते रहे। 22 लावियों ने रब की ख़िदमत करते वक़्त बड़ी समझदारी दिखाई, और हिज़क़ियाह ने इसमें उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की।
23 इस हफ़ते के बाद पूरी जमात ने फ़ैसला किया कि ईद को मज़ीद सात दिन मनाया जाए। चुनाँचे उन्होंने ख़ुशी से एक और हफ़ते के दौरान ईद मनाई। 24 तब यहूदाह के बादशाह हिज़क़ियाह ने जमात के लिए 1,000 बैल और 7,000 भेड़-बकरियाँ पेश कीं जबकि बुज़ुर्गों ने जमात के लिए 1,000 बैल और 10,000 भेड़-बकरियाँ चढ़ाईं। इतने में मज़ीद बहुत-से इमामों ने अपने आपको रब की ख़िदमत के लिए मख़सूसो-मुक़द्दस कर लिया था।
25 जितने भी आए थे ख़ुशी मना रहे थे, ख़ाह वह यहूदाह के बाशिंदे थे, ख़ाह इमाम, लावी, इसराईली या इसराईल और यहूदाह में रहनेवाले परदेसी मेहमान। 26 यरूशलम में बड़ी शादमानी थी, क्योंकि ऐसी ईद दाऊद बादशाह के बेटे सुलेमान के ज़माने से लेकर उस वक़्त तक यरूशलम में मनाई नहीं गई थी।
27 ईद के इख़्तिताम पर इमामों और लावियों ने खड़े होकर क़ौम को बरकत दी। और अल्लाह ने उनकी सुनी, उनकी दुआ आसमान पर उस की मुक़द्दस सुकूनतगाह तक पहुँची।
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