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 1 ख़ुदावन्द हमारी पनाह और ताक़त है; 
मुसीबत में मुस्त'इद मददगार। 
 2 इसलिए हम को कुछ ख़ौफ़ नहीं चाहे ज़मीन उलट जाए, 
और पहाड़ समुन्दर की तह में डाल दिए जाए 
 3 चाहे उसका पानी शोर मचाए और तूफ़ानी हो, 
और पहाड़ उसकी लहरों से हिल जाएँ। सिलह 
 4 एक ऐसा दरिया है जिसकी शाख़ो से ख़ुदा के 
शहर को या'नी हक़ ता'ला के पाक घर को फ़रहत होती है। 
 5 ख़ुदा उसमें है, उसे कभी जुम्बिश न होगी; 
ख़ुदा सुबह सवेरे उसकी मदद करेगा। 
 6 क़ौमे झुंझलाई, सल्तनतों ने जुम्बिश खाई; 
वह बोल उठा, ज़मीन पिघल गई। 
 7 लश्करों का ख़ुदावन्द हमारे साथ है; 
या'क़ूब का ख़ुदा हमारी पनाह है सिलाह। 
 8 आओ, ख़ुदावन्द के कामों को देखो, 
कि उसने ज़मीन पर क्या क्या वीरानियाँ की हैं। 
 9 वह ज़मीन की इन्तिहा तक जंग बंद कराता है; 
वह कमान को तोड़ता, और नेज़े के टुकड़े कर डालता है। 
वह रथों को आग से जला देता है। 
 10 “ख़ामोश हो जाओ, और जान लो कि मैं ख़ुदा हूँ। 
मैं क़ौमों के बीच सरबुलंद हूँगा। 
मैं सारी ज़मीन पर सरबुलंद हूँगा।” 
 11 लश्करों का ख़ुदावन्द हमारे साथ है; 
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