27
 1 ख़ुदावन्द मेरी रोशनी और मेरी नजात मुझे किसकी दहशत? 
ख़ुदावन्द मेरी ज़िन्दगी की ताक़त है, मुझे किसका डर? 
 2 जब शरीर या'नी मेरे मुख़ालिफ़ और मेरे दुश्मन, 
मेरा गोश्त खाने को मुझ पर चढ़ आए तो वह ठोकर खाकर गिर पड़े। 
 3 चाहे मेरे ख़िलाफ़ लश्कर ख़ेमाज़न हो, 
मेरा दिल नहीं डरेगा। 
चाहे मेरे मुक़ाबले में जंग खड़ी हो, तोभी मैं मुतम'इन रहूँगा। 
 4 मैंने ख़ुदावन्द से एक दरख़्वास्त की है, 
मैं इसी का तालिब रहूँगा; 
कि मैं उम्र भर ख़ुदावन्द के घर में रहूँ, 
ताकि ख़ुदावन्द के जमाल को देखूँ 
और उसकी हैकल में इस्तिफ़्सार किया करूँ। 
 5 क्यूँकि मुसीबत के दिन वह मुझे अपने शामियाने में पोशीदा रख्खेगा; 
वह मुझे अपने ख़ेमे के पर्दे में छिपा लेगा, 
वह मुझे चट्टान पर चढ़ा देगा 
 6 अब मैं अपने चारों तरफ़ के दुश्मनों पर सरफराज़ किया जाऊँगा; 
मैं उसके ख़ेमे में ख़ुशी की क़ुर्बानियाँ पेश करूँगा; 
मैं गाऊँगा, मैं ख़ुदावन्द की मदहसराई करूँगा। 
 7 ऐ ख़ुदावन्द, मेरी आवाज़ सुन! मैं पुकारता हूँ। 
मुझ पर रहम कर और मुझे जवाब दे। 
 8 जब तूने फ़रमाया, कि मेरे दीदार के तालिब हो; 
तो मेरे दिल ने तुझ से कहा, 
ऐ ख़ुदावन्द, मैं तेरे दीदार का तालिब रहूँगा। 
 9 मुझ से चेहरा न छिपा। 
अपने बन्दे को क़हर से न निकाल। 
तू मेरा मददगार रहा है; 
न मुझे तर्क कर, न मुझे छोड़, ऐ मेरे नजात देने वाले ख़ुदा!। 
 10 जब मेरा बाप और मेरी माँ मुझे छोड़ दें, 
तो ख़ुदावन्द मुझे संभाल लेगा। 
 11 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे अपनी राह बता, 
और मेरे दुश्मनों की वजह से मुझे हमवार रास्ते पर चला। 
 12 मुझे मेरे मुख़ालिफ़ों की मर्ज़ी पर न छोड़, 
क्यूँकि झूटे गवाह और बेरहमी से पुंकारने वाले मेरे ख़िलाफ़ उठे हैं। 
 13 अगर मुझे यक़ीन न होता कि ज़िन्दों की 
ज़मीन में ख़ुदावन्द के एहसान को देखूँगा, 
तो मुझे ग़श आ जाता। 
 14 ख़ुदावन्द की उम्मीद रख; 
मज़बूत हो और तेरा दिल क़वी हो; 
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