1 उन दिनों में एक आदमी बीमार पड़ गया जिस का नाम लाज़र था। वह अपनी बहनों मरियम और मर्था के साथ बैत — अनियाह में रहता था। 2 यह वही मरियम थी जिस ने बाद में ख़ुदावन्द पर ख़ुश्बू डाल कर उस के पैर अपने बालों से ख़ुश्क किए थे। उसी का भाई लाज़र बीमार था। 3 चुनाँचे बहनों ने ईसा को ख़बर दी, “ख़ुदावन्द, जिसे आप मुहब्बत करते हैं वह बीमार है।” 4 जब ईसा को यह ख़बर मिली तो उस ने कहा,
17 वहाँ पहुँच कर ईसा को मालूम हुआ कि लाज़र को क़ब्र में रखे चार दिन हो गए हैं। 18 बैत — अनियाह का येरूशलेम से फ़ासिला तीन क़िलोमीटर से कम था, 19 और बहुत से यहूदी मर्था और मरियम को उन के भाई के बारे में तसल्ली देने के लिए आए हुए थे। 20 यह सुन कर कि ईसा आ रहा है मर्था उसे मिलने गई। लेकिन मरियम घर में बैठी रही। 21 मर्था ने कहा, “ख़ुदावन्द, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता। 22 लेकिन मैं जानती हूँ कि अब भी ख़ुदा आप को जो भी माँगोगे देगा।” 23 ईसा ने उसे बताया,
28 यह कह कर मर्था वापस चली गई और चुपके से मरियम को बुलाया, “उस्ताद आ गए हैं, वह तुझे बुला रहे हैं।” 29 यह सुनते ही मरियम उठ कर ईसा के पास गई। 30 वह अभी गाँव के बाहर उसी जगह ठहरा था जहाँ उस की मुलाक़ात मर्था से हुई थी। 31 जो यहूदी घर में मरियम के साथ बैठे उसे तसल्ली दे रहे थे, जब उन्हों ने देखा कि वह जल्दी से उठ कर निकल गई है तो वह उस के पीछे हो लिए। क्यूँकि वह समझ रहे थे कि वह मातम करने के लिए अपने भाई की क़ब्र पर जा रही है। 32 मरियम ईसा के पास पहुँच गई। उसे देखते ही वह उस के पैरों में गिर गई और कहने लगी, “ख़ुदावन्द, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता।” 33 जब ईसा ने मरियम और उस के लोगों को रोते देखा तो उसे दुःख हुआ। और उसने ताअ'ज्जुब होकर 34 उस ने पूछा,
45 उन यहूदियों में से जो मरियम के पास आए थे बहुत से ईसा पर ईमान लाए जब उन्हों ने वह देखा जो उस ने किया। 46 लेकिन कुछ फ़रीसियों के पास गए और उन्हें बताया कि ईसा ने क्या किया है। 47 तब राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदियों ने सदरे अदालत का जलसा बुलाया। उन्हों ने एक दूसरे से पूछा, “हम क्या कर रहे हैं? यह आदमी बहुत से ख़ुदाई करिश्मे दिखा रहा है। 48 अगर हम उसे यूँही छोड़ें तो आख़िरकार सब उस पर ईमान ले आएँगे। फिर रोमी हाकिम आ कर हमारे बैत — उल — मुक़द्दस और हमारे मुल्क को तबाह कर देंगे।” 49 उन में से एक काइफ़ा था जो उस साल इमाम — ए — आज़म था। उस ने कहा, “आप कुछ नहीं समझते 50 और इस का ख़याल भी नहीं करते कि इस से पहले कि पूरी क़ौम हलाक हो जाए बेहतर यह है कि एक आदमी उम्मत के लिए मर जाए।” 51 उस ने यह बात अपनी तरफ़ से नहीं की थी। उस साल के इमाम — ए — आज़म की हैसियत से ही उस ने यह पेशीनगोई की कि ईसा यहूदी क़ौम के लिए मरेगा। 52 और न सिर्फ़ इस के लिए बल्कि ख़ुदा के बिखरे हुए फ़र्ज़न्दों को जमा करके एक करने के लिए भी। 53 उस दिन से उन्हों ने ईसा को क़त्ल करने का इरादा कर लिया। 54 इस लिए उस ने अब से एलानिया यहूदियों के दरमियान वक़्त न गुज़ारा, बल्कि उस जगह को छोड़ कर रेगिस्तान के क़रीब एक इलाक़े में गया। वहाँ वह अपने शागिर्दों समेत एक गाँव बनाम इफ़्राईम में रहने लगा। 55 फिर यहूदियों की ईद — ए — फ़सह क़रीब आ गई। देहात से बहुत से लोग अपने आप को पाक करवाने के लिए ईद से पहले पहले येरूशलेम पहुँचे। 56 वहाँ वह ईसा का पता करते और हैकल में खड़े आपस में बात करते रहे, “क्या ख़याल है? क्या वह ईद पर नहीं आएगा?” 57 लेकिन राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने हुक्म दिया था, अगर किसी को मालूम हो जाए कि ईसा कहाँ है तो वह ख़बर दे ताकि हम उसे गिरफ़्तार कर लें।
<- यूहन्ना 10यूहन्ना 12 ->