1 यीशु न अपनो चेलावों सी कह्यो, “होय नहीं सकय कि पाप म पड़य, पर हाय, ऊ आदमी पर जेको वजह हि आवय हंय! 2 जो इन छोटो म सी कोयी एक ख पाप म पड़य हय, ओको लायी यो भलो होवय कि गरहट को पाट ओको गरो म लटकायो जातो, अऊर ऊ समुन्दर म डाल दियो जातो। 3 [a]सचेत रहो! तुम का करय हय।
5 प्रेरितों न प्रभु सी कह्यो, “हमरो विश्वास बढ़ाव।”
6 प्रभु न उत्तर दियो, “यदि तुम ख राई को दाना को बराबर भी विश्वास होतो, त तुम यो शहतूत को झाड़ सी कहतो, कि जड़ी सी उचक क अपनो आप समुन्दर म लग जा। अऊर ऊ तुम्हरी आज्ञा मान लेतो।”
7 यदि “तुम म सी असो कौन हय, जेको सेवक नांगर जोतय या मेंढीं चरावय हय, अऊर जब ऊ खेत सी आवय हय, त ओको सी कहेंन, ‘तुरतच आव जेवन करन बैठ?’ 8 अऊर यो नहीं कहेंन, निश्चितच नहाय! ‘मोरो जेवन तैयार कर, अऊर जब तक मय खाऊ–पीऊ तब तक सेवा कर; येको बाद तय भी खाय पी लेजो?’ 9 का ऊ सेवक को अहसान मानेंन कि ओन उच काम करयो जेकी आज्ञा दी गयी होती? 10 योच तरह सी तुम भी जब उन सब कामों ख कर लेवो जेकी आज्ञा तुम्ख दियो गयी होती, त कहो, ‘हम साधारन सेवक हंय; जो हम्ख करनो होतो हम न केवल उच करयो हय।’ ”
11 असो भयो कि यीशु यरूशलेम जातो हुयो सामरियां अऊर गलील को सिमा सी होय क जाय रह्यो होतो। 12 कोयी गांव म सिरतो समय ओख दस कोढ़ी मिल्यो। जो ओको सी दूर खड़ो होतो। 13 उन्न ऊचो आवाज सी पुकार क कह्यो, “हे यीशु! हे मालिक! हम पर दया कर!”
14 यीशु न उन्ख देख क कह्यो, “जावो, अऊर अपनो आप ख याजकों ख दिखावो।”
20 कुछ फरीसियों न यीशु सी पुच्छ्यो कि परमेश्वर को राज्य कब आयेंन, त ओन ओख उत्तर दियो, “परमेश्वर को राज्य दिखन वालो रूप को जसो नहीं आवय। 21 अऊर लोग यो नहीं कहेंन, ‘इत हय! यां, उत हय!’ कहालीकि परमेश्वर को राज्य तुम्हरो बीच म हय।”
22 तब ओन चेलावों सी कह्यो, “असो समय आयेंन, जेको म तुम आदमी को बेटा को दिनो म सी एक दिन ख देखन चाहो, अऊर नहीं देख सको। 23 लोग तुम सी कहेंन, ‘देखो, उत हय!’ यां ‘देखो, इत हय!’ पर तुम चली नहीं जावो अऊर नहीं उन्को पीछू होय जावो। 24 कहालीकि जसो बिजली आसमान को एक छोर सी चमक क आसमान को दूसरों छोर तक चमकय हय, वसोच आदमी को बेटा भी अपनो दिन म प्रगट होयेंन। 25 पर पहिले जरूरी हय कि ऊ बहुत दु:ख उठाये, अऊर यो युग को लोग ओख नकारयो दियो जायेंन। 26 जसो नूह को दिन म भयो होतो, वसोच आदमी को बेटा को दिन म भी होयेंन। 27 जो दिन तक नूह जहाज पर नहीं चढ़्यो, ऊ दिन तक लोग खातो-पीतो रहत होतो, अऊर उन्म बिहाव होत होतो। तब जल–प्रलय न आय क उन सब ख नाश करयो। 28 अऊर जसो लूत को दिन म भयो होतो कि लोग खातो–पीतो, लेन–देन करतो, झाड़ लगातो अऊर घर बनावत होतो; 29 पर जो दिन लूत सदोम सी निकल्यो, ऊ दिन आगी अऊर गन्धक आसमान सी बरसी अऊर सब ख नाश कर दियो। 30 आदमी को बेटा को प्रगट होन को दिन भी असोच होयेंन।
31 [~2~]“ऊ दिन जो घर को छत पर हय अऊर ओको सामान घर म हय, त ऊ ओख लेन लायी मत उतरो; अऊर वसोच जो खेत म हय ऊ वापस घर नहीं जाय। 32 लूत की पत्नी ख याद रखो! 33 [~3~]जो कोयी अपनो जीव बचावनो चाहेंन ऊ ओख खोयेंन; अऊर जो कोयी ओख खोयेंन ऊ ओख बचायेंन। 34 मय तुम सी कहू हय, ऊ रात, दोय आदमी एक खटिया पर सोतो रहेंन: एक ले लियो जायेंन अऊर दूसरों छोड़ दियो जायेंन। 35 दोय बाई एक संग गरहट म अनाज पीसत रहेंन, एक ले ली जायेंन अऊर दूसरी छोड़ दियो जायेंन। 36 दोय लोग खेत म होयेंन, एक ले लियो जायेंन अऊर दूसरों छोड़ दियो जायेंन।”[~4~]
37 यो सुन क चेलावों न ओको सी पुच्छ्यो, “हे प्रभु यो कित होयेंन?”