1 इस कारण चाहिए, कि हम उन बातों पर जो हमने सुनी हैं अधिक ध्यान दें, ऐसा न हो कि बहक कर उनसे दूर चले जाएँ। 2 क्योंकि जो वचन स्वर्गदूतों के द्वारा कहा गया था, जब वह स्थिर रहा और हर एक अपराध और आज्ञा न मानने का ठीक-ठीक बदला मिला। 3 तो हम लोग ऐसे बड़े उद्धार से उपेक्षा करके कैसे बच सकते हैं[a]? जिसकी चर्चा पहले-पहल प्रभु के द्वारा हुई, और सुननेवालों के द्वारा हमें निश्चय हुआ। 4 और साथ ही परमेश्वर भी अपनी इच्छा के अनुसार चिन्हों, और अद्भुत कामों, और नाना प्रकार के सामर्थ्य के कामों, और पवित्र आत्मा के वरदानों के बाँटने के द्वारा इसकी गवाही देता रहा।
5 उसने उस आनेवाले जगत को जिसकी चर्चा हम कर रहे हैं, स्वर्गदूतों के अधीन न किया। 6 वरन् किसी ने कहीं, यह गवाही दी है,
14 इसलिए जबकि बच्चे माँस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उनके समान उनका सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी[c], अर्थात् शैतान को निकम्मा कर दे, (रोम. 8:3, कुलु. 2:15) 15 और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फँसे थे, उन्हें छुड़ा ले। 16 क्योंकि वह तो स्वर्गदूतों को नहीं वरन् अब्राहम के वंश को सम्भालता है। (गला. 3:29, यशा. 41:8-10) 17 इस कारण उसको चाहिए था, कि सब बातों में अपने भाइयों के समान बने; जिससे वह उन बातों में जो परमेश्वर से सम्बंध रखती हैं, एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बने ताकि लोगों के पापों के लिये प्रायश्चित करे। 18 क्योंकि जब उसने परीक्षा की दशा में दुःख उठाया, तो वह उनकी भी सहायता कर सकता है, जिनकी परीक्षा होती है।
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a 2:3 कैसे बच सकते हैं: दण्ड से बचे रहने का कौन सा रास्ता हैं, यदि हमें इस महान उद्धार से उपेक्षित होकर पीड़ित होना पड़े, और उसके उद्धार देने के प्रस्ताव को न लें।
b 2:7 तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया: अर्थात् परमेश्वर ने मनुष्य को स्वर्गदूतों से कुछ ही कम बनाया, परन्तु फिर भी परमेश्वर ने उन्हें उनके बराबर का स्थान दिया है।
c 2:14 मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी: शैतान इस संसार में मृत्यु का कारण था। मृत्यु का प्रारम्भ शैतान के कारण हुआ।