1 क्योंकि व्यवस्था[a] जिसमें आनेवाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है, पर उनका असली स्वरूप नहीं, इसलिए उन एक ही प्रकार के बलिदानों के द्वारा, जो प्रतिवर्ष अचूक चढ़ाए जाते हैं, पास आनेवालों को कदापि सिद्ध नहीं कर सकती। 2 नहीं तो उनका चढ़ाना बन्द क्यों न हो जाता? इसलिए कि जब सेवा करनेवाले एक ही बार शुद्ध हो जाते, तो फिर उनका विवेक उन्हें पापी न ठहराता। 3 परन्तु उनके द्वारा प्रतिवर्ष पापों का स्मरण हुआ करता है। 4 क्योंकि अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे[b]।
5 इसी कारण मसीह जगत में आते समय कहता है,
11 और हर एक याजक तो खड़े होकर प्रतिदिन सेवा करता है, और एक ही प्रकार के बलिदान को जो पापों को कभी भी दूर नहीं कर सकते; बार बार चढ़ाता है। (निर्ग. 29:38,39) 12 पर यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा। 13 और उसी समय से इसकी प्रतीक्षा कर रहा है, कि उसके बैरी उसके पाँवों के नीचे की चौकी बनें। (भज. 110:1) 14 क्योंकि उसने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किए जाते हैं, सर्वदा के लिये सिद्ध कर दिया है। 15 और पवित्र आत्मा भी हमें यही गवाही देता है; क्योंकि उसने पहले कहा था
18 और जब इनकी क्षमा हो गई है, तो फिर पाप का बलिदान नहीं रहा।
19 इसलिए हे भाइयों, जबकि हमें यीशु के लहू के द्वारा उस नये और जीविते मार्ग से पवित्रस्थान में प्रवेश करने का साहस हो गया है, 20 जो उसने परदे अर्थात् अपने शरीर में से होकर, हमारे लिये अभिषेक किया है, 21 और इसलिए कि हमारा ऐसा महान याजक है, जो परमेश्वर के घर का अधिकारी है। 22 तो आओ; हम सच्चे मन, और पूरे विश्वास के साथ, और विवेक का दोष दूर करने के लिये हृदय पर छिड़काव लेकर, और देह को शुद्ध जल से धुलवाकर परमेश्वर के समीप जाएँ[c]। (इफि. 5:26, 1 पत. 3:21, यहे. 36:25) 23 और अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें; क्योंकि जिसने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य है। 24 और प्रेम, और भले कामों में उकसाने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। 25 और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों-ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों-त्यों और भी अधिक यह किया करो।
26 क्योंकि सच्चाई की पहचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। 27 हाँ, दण्ड की एक भयानक उम्मीद और आग का ज्वलन बाकी है जो विरोधियों को भस्म कर देगा। (यशा. 26:11) 28 जबकि मूसा की व्यवस्था का न माननेवाला दो या तीन जनों की गवाही पर, बिना दया के मार डाला जाता है। (व्यव. 17:6, व्यव. 19:15) 29 तो सोच लो कि वह कितने और भी भारी दण्ड के योग्य ठहरेगा, जिसने परमेश्वर के पुत्र को पाँवों से रौंदा, और वाचा के लहू को जिसके द्वारा वह पवित्र ठहराया गया था, अपवित्र जाना हैं, और अनुग्रह की आत्मा का अपमान किया। (इब्रा. 12:25) 30 क्योंकि हम उसे जानते हैं, जिसने कहा, “पलटा लेना मेरा काम है, मैं ही बदला दूँगा।” और फिर यह, कि “प्रभु अपने लोगों का न्याय करेगा।” (व्यव. 32:35,36, भज. 135:14) 31 जीविते परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है।
32 परन्तु उन पहले दिनों को स्मरण करो, जिनमें तुम ज्योति पाकर दुःखों के बड़े संघर्ष में स्थिर रहे। 33 कुछ तो यह, कि तुम निन्दा, और क्लेश सहते हुए तमाशा बने, और कुछ यह, कि तुम उनके सहभागी हुए जिनकी दुर्दशा की जाती थी। 34 क्योंकि तुम कैदियों के दुःख में भी दुःखी हुए, और अपनी सम्पत्ति भी आनन्द से लुटने दी; यह जानकर, कि तुम्हारे पास एक और भी उत्तम और सर्वदा ठहरनेवाली सम्पत्ति है। 35 इसलिए, अपना साहस न छोड़ो क्योंकि उसका प्रतिफल बड़ा है। 36 क्योंकि तुम्हें धीरज रखना अवश्य है, ताकि परमेश्वर की इच्छा को पूरी करके तुम प्रतिज्ञा का फल पाओ।
-
a 10:1 व्यवस्था: मत्ती 5:17 की टिप्पणी देखें।
b 10:4 क्योंकि अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे: यहाँ पर यह संदर्भ बलिदान के लिये हैं जो प्रायश्चित के महान दिन पर किए जाते थे, एक पशु का लहू बहाकर कभी आत्मा शुद्ध नहीं किया जा सकता है।
c 10:22 परमेश्वर के समीप जाएँ: अटूट विश्वास के साथ प्रार्थना और स्तुति में, परमेश्वर में विश्वास की परिपूर्णता के साथ, जो सन्देह के लिये कोई जगह नहीं छोड़ता।